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दिन और रात का हर रोज नजारा देखा है मैंने



दिन और रात का हर रोज नजारा देखा है मैंने
सुख और दुःख को जिन्दगी में आते देखा है मैंने
कुदरत के कहर से इंसान को लड़ते हुए देखा है मैंने
धरती से उड़ारी मार, इंसान को चाँद पे पैर रखते हुए भी देखा है
अनहोनी को होनी में बदलते हुए भी देखा है
मालक का किया हुआ है यह सब कुछ, लोगों के मुह से भी सुना है मैंने
डूब रहे बन्दे को किनारे पर पहौचते हुए भी देखा है
अमीर को गरीब होते हुए भी देखा है
खोटे सिक्कों को बाज़ार में चलते हुए भी देखा है
जिस नाम से भी कोई उस प्रभु को याद करता है
उस नाम से उस मनुष को चर्दी कलां में रहते हुए भी देखा है मैंने
वाहेगुरु जी


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