इस आजादी का जश्न मनाने का हक़दार कौन ?
क्या साम्प्रदायिक कट्टरवाद को धर्म का नाम दिया जा सकता है
। क्या कोई मजहब हिंसा और बैर करना सिखाता है? पर इक़बाल ने तो कहा था “ मजहब नहीं सिखाता
आपस में बैर रखना । फिर यह कैसा धर्म है
और कैसा मजहब ? आज 70 साल देश की
आजादी के बाद भी हमारे सब के बीच यह सवाल अक्सर घूम फिर कर क्यों खड़ा हो जाता है ।
धर्म के ठेकेदारों ने धर्म को अपने रंग में पिरो
कर धर्म को बदनाम तो किया ही उसके साथ समाज को अनुशासित हीनता तरीके से ठगने का धंधा भी बना दिया है आज देश
की आजादी के 70 वर्ष के बाद भी धर्म का गठबंधन राजनीती के
लिए किया जा रहा है जो शोषण का हथियार बनकर
समाज को हठवाद और कट्टरपंथ का रूप देने में मजबूर कर रहा है । आज भी दोनों सदनों में शहीदों के बलिदान ,सेनानियों
के योगदानों के बजाए अपनी अपनी राजनीतिक मजबूरिया के ही गुण गाए जा रहे है तो क्या हम और हमारे आज
के नेता,आजाद भारत का सपना दिखाने वाले हमारे सैनानियों की राह चल रहे है ? सच बात तो यह भी है, वक़्त के
गुजरे पन्नो में भारत से ज्यादा गौरवशाली
इतिहास किसी भी देश का नहीं हुआ और सच यह भी है संस्कृतक, राजनैतिक
सामरिक और आर्थिक हमले भी इतिहास में शायद किसी देश पर नहीं हुए होगे जितने हमारे देश पर । वो
देश जिसे इतिहास में विशव गुरु के रूप में जाना जाता हो ,आज उसी देश में हमारे प्रधान मंत्री को “मेक इन इंडिया” की
शुरुआत करनी पड़ रही है । “सोने की चिर्डिया” के नाम से जाना गया देश आज विश्व के विकासशील देशों में से एक है । विदेशी हमारे देश में लूट
के इरादे से आते गए और जाते गए ,सिर्फ चेहरे बदलते गए और हम वीर होते हुए भी पराजित होते गए
– क्यों? क्यों कि हम हर युग में कौशल से जीतने की कोशिश में लगे रहे और वे छल से हम पर विजय प्राप्त
करते रहे ।हार के कारण और भी रहे होगे - तो क्या हम 70 साल के बाद भी अपनी खुद की गलतियों से सीखने की कोशिश कर
रहे है ? क्या खंडित भारत को हम आजाद भारत कहने
के लिए विवश है ? क्या अंग्रेजो द्वारा “फूट डालो और राज करो” की नीति पर आज हमारे राजनेता तो नहीं अपना
रहे ? याद रहे 1857 से 1947 के बीच अंग्रेजो
ने भारत को सात बार तोड़ा और आखिर में वो जाते जाते हिन्दू समाज को जात, छेत्र और दल के आधार पर भी विभाजित कर गए और आज हमारे नेता उसी को अपना कर “वोट बैंक की राजनीति का खेल” खेल रहे है । तो इस आजादी का जश्न
मनाने का असली हकदार कौन है ? कौन से लोग,और किस बात के लिए 15 अगस्त का जश्न मनाये ? क्या हम जश्न मनाये सरकार की उन नीतियो का
जो इस देश के नागरिक को धर्म और जाति के आधार पर आंकती है । क्या जश्न मनाये वो किसान जो विचोलियों के चलते आत्महत्याओं पर मजबूर है । लगता है दुनिया
के इस बढ़े कैनवस में आज हम सभी कार्टून बन गए है
। यहाँ किसी का कोई अस्तित्व नहीं है हम खुद ही कुछ लकीरें खीच रहे है तो खुद ही उन्हें मिटा भी रहे है ।
स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है ,यह नारा लोक मान्यतिलक ने 1917 में नाशिक में होम लीग की स्थापना की पहली वर्षगांठ पर दिया था। यह सच है कि इस
भावना को न कोई हथियार काट सकता है और न ही अग्नि जला सकती है और न ही
हवा सुखा सकती है । क्या ऐसा आजाद भारत यहाँ आज भी तोड़ने की बातें होती हो – नहीं, ऐसी आज़ादी यहाँ दोस्ती और आपसी भाईचारा का पैगाम ही इस आजादी के
जश्न में राजगुरु,सुखदेव,भगत सिंह ,चंद्रशेखर, लक्ष्मीभाई , सुभाषचंद्र बोस
और अनेक वीरों के लिए एक सच्ची श्रांदiजलि दे सके
जय भारत
Your writing is beautiful and i always look forward to your writing. Anybody can write but the way you combine letters and words along with the wit is beyond applause.👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👍🏻👍🏻👍🏻
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