ईद के मौके पर इंसान के बहुत करीब होता है अल्लाह
नयी दिल्ली : कुर्बानी का
पर्व ईद-उल-जुहा की तैयारियां पूरे देश में बड़े ही जोर-शोर से चल रही हैं। त्याग और बलिदान का यह पर्व एक विशेष संदेश देता है। बकरीद को
अरबी में ईद-उल-जुहा कहते हैं। 'बकरा ईद’ अरबी में 'बक़र’ का अर्थ है बड़ा
जानवर जो ज़िबह किया (काटा) जाता है। ईद-ए-कुर्बां का मतलब है बलिदान की भावना,
अरबी में 'क़र्ब’ नजदीकी
या बहुत पास रहने को कहते हैं। मतलब इस मौके पर अल्लाह इंसान के बहुत करीब हो
जाता है। इस त्योहार को रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के लगभग 70 दिनों बाद मनाया जाता है। हजरत
इब्राहिम द्वारा अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तत्पर हो
जाने की याद में इस त्योहार को मनाया जाता है। इस्लाम के विश्वास के मुताबिक
अल्लाह हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने उनसे अपने बेटे
इस्माइल की कुर्बानी देने के लिए कहा। हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी
देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी
आंखों पर पट्टी बांध ली। जब उन्होंने पट्टी खोली तो देखा कि मक्का के करीब मीना
पर्वत की उस बलि वेदी पर उनका बेटा नहीं, बल्कि दुंबा था और
उनका बेटा उनके सामने खड़ा था। दुनियाभर के मुसलमान इस अवसर पर अल्लाह में अपनी
आस्था दिखाने के लिए जानवरों की कुर्बानी देते हैं।
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