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आज किस स्कूल में बच्चों को इंसान बनाया जाता है ?


समाज और देश के निर्माण में शिक्षकों का अहम योगदान

शिक्षक समाज में उच्च आदर्श स्थापित करने वाला वो नाम है जो किसी भी देश या समाज के निर्माणमें इक अहम भूमिका निभा सकता है और शिक्षक को समाज का आइना अगर कहा जाए तो गलत नहीं होगा. शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा से ही पूज्यनीय रहा है। शिक्षक इक ऐसा चरित्र है जो सभी को ज्ञान देता है,सिखाता है और राष्ट्र के निर्माण की आधारशिला में आपना  योगदान देता है। समाज को राह दिखाने वाला अगर कोई होता है तो वो होता है शिक्षक, जिस को हमारी  भारतीय संस्कृति में माता पिता के बराबर का दर्जा दिया जाता है, तो आज हमारे आस पास  कितने ऐसे शिक्षक है जो ईमानदारी से अपनी जुम्मेवारी को निभा रहे है ? और कितने ऐसे विधार्थी है जो शिक्षक की बात को सुनते है ?सच में आज के समाज के नैतिक मूल्य इतने बदल गए हैंजिस का एहसास तब होता है जब आज के समाज में व्यक्ति को उसके चरित्र से नहीं उसके पद और प्रतिष्ठा से आंका जाता है। आज धनवान व्यक्ति पूजा जाता है और यह नहीं देखा जाता कि वो धन कैसे और कहाँ से आ  रहा है। ऐसे माहौल में मेहनत से धन कमाने वाला अपने आप को ठगा हुआ सा महसूस करता है। आज पूरी दुनिया ने बहुत तरक्की कर ली है सभी प्रकार के सुख सुविधाओं के साधन हैं लेकिन दुख के साथ यह कहना पड़ रहा है कि भले ही विज्ञान के सहारे आज सभ्यता अपनी चरम पर है लेकिन मानवता अपने सबसे बुरे समय से गुजर रही है। भौतिक सुविधाओं धन दौलत को हासिल करने की दौड़ में हमारे संस्कार कहीं दूर पीछे छूटते जा रहे हैं। उस का इक कारण यह भी है कि हमारी शिक्षा का  बाजारीकरण हो गया है। पुराने समय में शिक्षा इक धंधा नहीं था हमने अपने बच्चों को गणित की शिक्षा दी,विज्ञान का ज्ञान दिया,अंग्रेजी आदि भाषाओं का ज्ञान दिया,लेकिन व्यक्तित्व एवं नैतिकता का पाठ पढ़ाना भूल गए। हमने उनके चरित्र निर्माण के पहलू को नजरअंदाज कर दिया। एक व्यक्ति के व्यक्तित्व में चरित्र की क्या भूमिका होती है इसका महत्व भूल गए। आज के समाज में झूठ बोलना,दूसरों की भावनाओं काख्याल नहीं रखनाअपने स्वार्थों को ऊपर रखनाकुछ ले दे कर अपने काम निकलवा लेनाआगे बढ़ने के लिए 'कुछ भी करेगाये सारी बातें आज अवगुण नहीं "गुण" माने जाते हैं। दरअसल हमारा समाज आज जिस दौर से गुजर रहा है,वहां नैतिक मूल्यों की नईं नई परिभाषाएँ गढ़ी जा रही हैं।एक समय था जब हमें यह सिखाया जाता था कि झूठ बोलना गलत बात है लेकिन आज ऐसा नहीं है। बहुत ही सलीके से कहा जाता है कि जिस सच से हमारा नुकसान हो उससे तो झूठ बेहतर है और अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए सफेद झूठ बोलने से भी परहेज़ नहीं किया जाता। आज के युग में रिश्ता चाहे प्रोफेशनल हो या पर्सनलझूठ आज सबसे बड़ा सहारा है यह कौन सिखाता है ? एक शिक्षक नहीं सिखाता.यह शिक्षक को मालूम है कि यदि चरित्र का पतन हो जाता है तो मनुष्य का ही पतन हो जाता है। तो फिर इस के क्या मायने निकाले? ऐसे में भारत का निर्माण केसे होगा ? जिस युवा पीढ़ी पर भारत निर्माण का दायित्व है उसके नैतिक मूल्य तो कुछ और ही बन गए हैंभारत के निर्माण के लिए हमें अपने पुराने नैतिक मूल्यों की ओर लौटना होगा।इस के लिए पहल कौन करेगा शायद हम सब को अपने घरों से ही करनी होगी शिक्षक इस के बाद में अपनी भूमिका निभाएगा। और उस की भूमिका का महत्व बाजारीकरण से हट कर होगा 

हरीश अरोरा 




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