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सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों के लिए वेतन एवं भत्ते के लिए स्थायी आयोग पर केंद्र से रूख स्पष्ट करने को कहा


5 मार्च को देना होगा जवाब
सांसदों के लिए वेतन और भत्तों का निर्धारण करने के लिए स्थायी आयोग के गठन पर केंद्र सरकार की विफलता पर
नाराजगी जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि वो पांच मार्च तक कोर्ट को इस संबंध में अपना रुख स्पष्ट करे।
न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने पिछले साल सितंबर में सरकार द्वारा दायर किए गए
हलफनामे का हवाला देते हुए कहा, “आपका हलफनामा स्पष्ट नहीं है कि आप सांसदों के वेतन और भत्ते के लिए स्थायी
आयोग चाहते हैं या नहीं।केन्द्र के लिए पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अजित सिन्हा ने पीठ को बताया कि सरकार मौजूदा विधायकों
और सांसदों के लिए वेतन और भत्ते तय करने के लिए एक स्वतंत्र आयोग की स्थापना करने पर विचार कर रही है। हालांकि,
न्यायालय को तस्वीर स्पष्ट करने के लिए कम से कम एक हफ्ते का समय लगेगा।केंद्र हमेशा इस बात की दलील क्यों देता
है कि नीतिगत मामलों को संसद के लिए छोड़ा जाना चाहिए और अदालत को फैसला नहीं करना चाहिए ?” सुप्रीम कोर्ट ने
सरकार से कहा। बेंच ने कहा कि राजनीतिज्ञों द्वारा संपत्ति के स्रोत के अनिवार्य बनाने का आदेश का केंद्र की आपत्ति के
बावजूद सभी राजनीतिक दलों द्वारा स्वागत किया गया था। बेंच ने 6 मार्च को मामले की सुनवाई तय करते समय इस मुद्दे
पर विशिष्ट रुख की मांग की।दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट के अप्रैल, 2016 के आदेश के खिलाफ एनजीओ लोकप्रहरी ने अपील
दाखिल की है। हाईकोर्ट ने रिट याचिका को खारिज किया था जिसमें संसद द्वारा किए गए सांसद भत्ता और पेंशन अधिनियम,
1954 संशोधन की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी। इसमें संसद ने संसद के पूर्व सदस्यों को पेंशन और सुविधाएं प्रदान
करने के लिए नियम बनाए हैं। याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने इस दलील कि अनुच्छेद 106, जो अपने
सदस्यों के वेतन और भत्ते पर संसद को कानून बनाने का अधिकार देता है, केवल वेतन और भत्ते को सीमित करता है और
यह पेंशन के बारे में नहीं कहता, को अस्वीकर कर दिया। उसमें कहा गया है कि ये मामला विधायिका के अधिकार में है और
इसके पूर्व सदस्यों के लिए सामाजिक सुरक्षा के इस तरह के एक उपाय को अपनाने के लिए संसद पर कोई संवैधानिक निषेध
नहीं है। इसमें उन लोगों के लिए सुविधाओं और लाभों के अनुदान के खिलाफ चुनौती को भी खारिज कर दिया जो संसद के
सदस्य रहे हैं। पीठ ने कहा कि संसद के सदस्य लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधि हैं जो उनकी ओर से बहस करते हैं और भारतीय
लोकतंत्र के सार का प्रतिनिधित्व करने के लिए उनके निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुने गए हैं। संसद सदस्यों
को लोगों द्वारा प्रतिनिधियों के रूप में चुना जाता है: ऐसे व्यक्ति  जिनके प्रतिनिधित्व और व्यक्तियों का वे प्रतिनिधित्व
करते हैं।किसी सदस्य को पेंशन भुगतान का अनुदान एक संसद सदस्य के रूप में पद समाप्त होने के बाद जीवन की एक
प्रतिष्ठित स्थिति की रक्षा करने की आवश्यकता को पूरा करने के लिए है। एक पूर्व सांसद को भी गरिमा के जीवन जीने की
जरूरत होती है।  ये केवल संसद सदस्यों के लिए ही चिंता का मामला नहीं है, बल्कि एक ऐसा मुद्दा है जो लोकतंत्र के कामकाज
के लिए महत्वपूर्ण है।.


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