धर्म-निर्पेक्षता का बदलता चेहरा
धर्म-निर्पेक्षता का बदलता
चेहरा
भारत – एक ऐसा देश जिसमें हर राजनीतिक पार्टी ने कई चीज़ों के मायनों
को अपनी अपनी सुविधा के मुताबिक एक नया आयाम दिया है। सब से ज्यादा आधुनिक काल में
“सेक्यूलर” शब्द का एक नया आयात
जनता को मिला है। जिसका अर्थ आज इस देश को धर्म निर्पेक्ष होने का वायदा नहीं करता
वरन् हमारे नेता केवल एक खास धर्म की ओर ध्यान केसे दे सकते थे ? वर्ना क्या कारण
है कि कभी किसी “सेक्यूलर” नेता द्वारा दीपावली/होली, गुरुपुरव,लोहड़ी/बैसाखी या
क्रिसमस/ईस्टर आदि की दावत नहीं दी जाती लेकिन इफ़्तार पार्टी देने की सभी में होड़
लगी हुई होती है। हर साल माननीय राष्ट्रपति जी इफ़्तार पार्टी देते हैं। क्या किसी ने अभी दुर्गा पूजा पर
पार्टी दी थी? क्या
दीपावली पर? गुरुपुरव, क्रिसमस पर
कोई नेता पार्टी दे रहा है? क्या किसी नेता को टैक्सपेयर्स (tax payers) के खर्चे पर कोई दावत देनी चाहिए? अगर
ऐसा है तो क्या उस धर्म विशेष के लोगों से टैक्स आदि वसूल करना चाहिए? लेकिन अब समय बदल गया है। ऐसा मुझे लगता है कियों अब
सरकारें बदल गई है,देश
बदल रहा है,अच्छे दिन आ रहे है और अब सिर्फ़ एक धर्म विशेष को ही अपीज़ (appease) करना उद्देश्य नहीं होगा तो मेरे
ख्याल से अब इस के लिए टैक्स आदि भी किसी एक धर्म विशेष के लोगों से नहीं लेना चाहिए, और यदि सरकारें अभी भी धर्मनिर्पेक्ष है तो उनको
धर्मनिर्पेक्ष वास्तविक मायनों में रहना चाहिए। आज जो जगह जगह विरोध हो रहा है उस
के मायने क्या निकले ? क्या जो लोग हत्या का विरोध कर रहे है वो सारे देशद्रोही है
? या फिर उनको इस सरकार के कथाकथित देशप्रेमियो से सर्टिफिकेट लेना चाहिए ? कियों
गोरखपुर में बच्चों की मौतों पर सब मौन
रहे ? तब मीडिया कहा था? सच यह भी है कियों फर्रुखाबाद में हुई बच्चों की मौतों पर
लोगों की कलम ने लिखना बन्द कर दिया ? क्या उस वक्त उनके बोलने और लिखने की ताकत खत्म
हो गई थी या फिर उनकी कलाम की स्याही सुख गई थी? जुल्म आखिर जुल्म होता है। कल जो
लोग कुलबुर्गी,दाभोलकर और पंसारे की हत्या पर चुप रहे इसीलिए गौरी की हत्या हुई । इसके
जिम्मेदार
कौन लोग है ? वे लोग जिन्होंने उन पर गोलियां चलाई? नहीं,बल्कि उनकी हत्या में और
आप भी शामिल है क्योंकि हम कल चुप थे तो क्या इसलिए हत्या हुई तो क्या विरोध करने से हत्याए बंद होगी ? यह तो अब ये सरकार ही तह करेगी कि उन को कौन सी धर्म निर्पेक्ष की परिभाषा पसंद
है ?
हरीश अरोरा
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