हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दे और मतदाताओं की चुप्पी कुछ तो कह रही है
और सभी को उम्मीद है मतदान करीब करीब ५० % से ज्यादा होगा .हो सकता है इस चुनाव में
मतदाता की चुप्पी ही किसी एक के लिए परिवर्तन की सुनामी लेकर आये प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी और विपक्षी नेता राहुल गांधी द्वारा एक-दूसरे की पार्टी व नेतृत्व को
कोसने के बावजूद चुनाव आखिरी दौर में उम्मीदवारों के व्यवहार, पार्टियों के वायदों और पार्टी के नेता की
छवि पर आकर टिक गया और इस खूबसूरत पहाड़ी राज्य में बीजेपी ने छप्पर फाड़ बहुमत की
भविष्यवाणि के बावजूद अपने काडरों को घर-घर प्रचार में झोंक दिया. प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी द्वारा अपनी जानी-पहचानी शैली में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को
जमानतशुदा राजा बताकर भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने की जीतोड़ कोशिश की लेकिन मतदान के
ऐन मौके पर भी आश्चर्य यह रहा कि भ्रष्टाचार को यहां निर्णायक मुद्दा नहीं माना जा
रहा. दिक्कत यह भी है कि बीजेपी के मुख्यमंत्री चेहरे प्रेमकुमार धूमल और उनके
सांसद बेटे अनुराग ठाकुर पर भी स्टेडियम की जमीन के दुरुपयोग में भागीदारी का आरोप
है. वीरभद्र सिंह पर तो 2012
में भी आय से
अधिक संपत्ति की जांच का यही मामला चल रहा था.उसके बावजूद हिमाचलियों ने लोकतंत्र
में विपक्षी दल के सिर पर सत्ता की टोपी रखने की अपनी परंपरा निभा कर कांग्रेस को
राज और उन्हें मुख्यमंत्री पद सौंपा था. जागरूक हिमाचलियों द्वारा इसी परंपरा के
निर्वाह के तहत अबकी बीजेपी को जिताने की भविष्यवाणी की जा रही है. बीजेपी द्वारा
प्रधानमंत्री मोदी सहित अपने नेताओं द्वारा सभाओं की ‘कारपेट बांबिंग’ करने का असर भी मतदाताओं केमानस पर दिखेगा.पहाड़ी राज्य होने के कारण यहां की विधानसभा सीटों का क्षेत्रफल
आकार में भले ही ज्यादा हो,
मगर मतदाताओं की
औसत संख्या यहां 76,000
प्रति सीट ही
है. यह संख्या दिल्ली के नगर निगम वार्ड के औसतन एक लाख वोटर से भी कम है. इसी वजह
से हिमाचल में उम्मीदवारों और स्थानीय मुद्दों की पूछ अधिक है. लोग एक-दूसरे को
पीढ़ियों से जानते हैं.इसीलिए वीरभद्र हों,पंडित सुखराम हों,
ठाकुर रामलाल
हों अथवा प्रेमकुमार धूमल,
किसी पर भी
भ्रष्टाचार का मुद्दा यहां टिक नहीं पाता. पंडित सुखराम तो टेलीकॉम घोटाले में
करोड़ों रूपए नगदी सहित पकड़े जाने के ठीक बाद हुए चुनाव में मंडी जिले में पांच सीट
जीतने का रिकॉर्ड बना चुके हैं. उनका यह जलवा 1998 में दिखा था और उनकी पार्टी हिमाचल विकास कांग्रेस से गठबंधन के बूते ही
बीजेपी राज्य में दूसरी बार सत्तारूढ़ हुई थी. इसी तरह राज्य के मुख्यमंत्री रहते
जंगलों की अवैध कटाई करवा कर ‘लकड़़ी चोर’ का तमगा पाने वाले ठाकुर रामलाल को भी जनता
जिताने में गुरेज नहीं कर रही. रामलाल तो आंध्र प्रदेश की पहली गैर कांग्रेसी एनटी
रामाराव सरकार को बतौर राज्यपाल अवैध रूप में बर्खास्त करने के दागी भी रहे हैं.राज्य
की विधानसभा में कुल 68
सीटे हैं. उसमें बीजेपी को अब तक दो बार स्पष्ट बहुमत मिला और उसने कुल तीन बार
सरकार बनाई है और हर राज्य की तरह निजी वाकफियत की वजह से प्रदेश में कम से कम
एक-तिहाई सीटों पर वंशवाद भी हावी है.यहां वोटर के लिए देश की अर्थव्यवस्था से
ज्यादा जरूरी हैं रोजगार,
सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और पेयजल की सुविधा. कांग्रेस का दावा है कि पिछले पांच साल में
उसने 60,000
सरकारी नौकरियों
में रोजगार दिया है. सरकारी नौकरी प्रदेश में लॉटरी लगने के समान है. हरेक परिवार
की हसरत रहती है कि उसके कम से कम एक सदस्य को सरकारी नौकरी मिल जाए.कांग्रेस
उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इसी बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसा कि उनके
गुजरात में तो पिछले पांच साल में 20,000 लोगों को भी सरकारी नौकरी नहीं मिली, जबकि उनकी पार्टी की सरकार ने उसी दौरान वहां
से तीन गुना ज्यादा नौकरी हिमाचल में दी हैं. इसके बावजूद चुनाव पूर्व सर्वेक्षण
कांग्रेस का सूपड़ा साफ होने और दो-तिहाई सीट पर बीजेपी के जीतने की भविष्यवाणी कर
रहे हैं.चुनाव के दौरान वीरभद्र और कांग्रेस की मजबूत रणनीति भी दो मामलों में
भाजपा पर हावी रही. पहला वीरभद्र की सदारत में चुनाव लड़कर उनका नेतृत्व राज्य में
जारी रखने का मतदाता को संदेश देना. दूसरा उन्हीं के कंधों पर प्रचार का बोझ
डालना.साल 2014
के आम चुनाव के
बाद हुए तमाम विधानसभा चुनावों में यह पहला राज्य है जहां प्रधानमंत्री मोदी को
किसी मुख्यमंत्री से लोहा लेना पड़ा है. और कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व पर डर के
मारे मैदान छोड़ भागने का आरोप भी लगाया उनकी इस खीझ की वजह वीरभद्र की सभाओं में
भी हो रहा लोगों का जमावड़ा और उनके प्रति ठाकुरों की सहानुभूति है. पूर्व
मुख्यमंत्री धूमल पर ठकुरिया दांव लगाने की मजबूरी इसी दबाव में से उभरी है. इसीलिए
बीजेपी को मोदी की छवि पर चुनाव जीतने की रणनीति बीच राह बदलनी पड़ी. हालांकि
वीरभद्र पर भी कांग्रेस ने उत्तराखंड से सबक लेकर मजबूरी में ही दांव लगाया है.हिमाचल
प्रदेश के इस चुनाव की और भी कई विशेषता हैं. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राज्य
में हालांकि 33
फीसद सीट महिला
उम्मीदवारों को सौंपने में निकम्मे साबित हुए हैं फिर भी राज्य की छह सीटों पर
महिला मतदाता ही निर्णायक हैं. महिला मतदाताओं की संख्या यूं तो कुल 24.5 लाख है मगर जुब्बल कोटखाई, नादौन, बदसर,
सुजानपुर, हमीरपुर और लाहौल स्पिति में महिला मतदाताओं
की तादाद पुरुषों से अधिक है.वैसे राज्य के
कुल 49,88,367
वोटरों में
महिलाओं के मुकाबले पुरुष वोटरों की तादाद बस 75,000 ही अधिक है. वीरभद्र रिकॉर्ड सातवीं बार
मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में हैं. उन्होंने राज्य में जगह-जगह स्कूल, अस्पताल और तहसील खोल दिए हैं. उन्हें
राजधानी शिमला के अलावा मंडी, कुल्लू,
नाहन, उना, कांगड़ा और विलासपुर आदि कारोबार बहुल जिलों से नोटबंदी एवं जीएसटी की मार के
विरुद्ध समर्थन मिलने की उम्मीद है. उनके लिए यह चुनाव राजनीतिक जीवन-मरण का सवाल
है,
क्योंकि वे अपने
बेटे विक्रमादित्य सिंह को अपनी गद्दी सौंपना चाहते हैं.दूसरी तरफ 73 साल के धूमल तीसरी बार मुख्यमंत्री,बीजेपी की
जीत की भविष्यवाणी से बनते नजर आ रहे हैं. इसके बावजूद मोदी-शाह जोड़ी की 75 साल में पद से रिटायर करने की समय सीमा उनके
सिर पर शैतान की तलवार की तरह लटक रही है.
क्या कहता है हिमाचल का वोटर
Reviewed by Vaah!Delhi
on
November 09, 2017
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