कांग्रेस की नई उम्मीद: राहुल गांधी
शायद कोई विरला ही कांग्रेस प्रेमी हो जिसने कभी यह न सोचा हो कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनेगा जिस दिन राहुल गांधी ने राजनीति में कदम रखा उसी दिन से ही यह तय माना जाने लगा था कि कांग्रेस परिवारवाद की पटरी पर चलती रहेगी और आखिरकार यह काम भी सोमवार को पूरा हो ही गया जब 9000 प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से उनके नाम पर मोहर लगाई इसके पहले पार्टी की कमान 19 साल तक सोनिया गांधी के हाथ में रही. बीच-बीच में पार्टी में राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने की मांग भी उठने लगी. राहुल गांधी का निर्विरोध चुने जाना मामूली बात नहीं है ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि आज भी संगठन में सोनिया गांधी की पेंठ है और हिंदुस्तानी कांग्रेसी आज भी सोनिया गांधी और उसके परिवार को सिर आंखों पर बिठाने के लिए तैयार है, खैर इसमें किसी को भी कोई एतराज नहीं होना चाहिए की परिवारवाद के चलते कांग्रेस चले जा भागे. अब सवाल यह पैदा होता है कि कांग्रेस और देश की राजनीति में कितना कू फर्क पड़ेगा ? वक्त वक्त की बात है, ठीक राहुल के अमेरिका दौरे से पहले लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां राहुल का ना केवल मखौल उड़ाते थे उस पर तंज भी कसते थे.आज उनके विरोधियों की राय काफी हद तक बदल चुकी है.गुजरात चुनाव के मायने चाहे कुछ भी हो, चाहे कांग्रेस हारे या जीते,फिर भी यह तो मान ही लिया जाए कि कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा हुआ है.चुनौतियां और भी है- लगातार एक के बाद एक चुनाव हार जाना,संगठन का संचालन और काम-काज को लोकतांत्रिक तरीके से नए सिरे से ऊर्जावान बनाना बहुत बड़ी चुनौती होगी.पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने राहुल गांधी के नाम पर प्रधानमंत्री के रूप में कांग्रेसी उम्मीदवार घोषित कर दिया है.गुजरात के बाद मध्य प्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव होने बाकी है. भाजपा से यह सब छीनने की बहुत बड़ी चुनौती होगी.अगले 16 महीनों में नए सहयोगियों को तलाशना,संगठन को मजबूत करना,अनुभवी नेताओं के बीच संतुलन बनाए रखना ‘कांग्रेस की नई उम्मीद’ राहुल गांधी,क्या यह सब कर पाएंगे? गुजरात चुनाव के बाद शायद कुछ पता चल पाए
अगर किसी भाई के पास कुछ कहने को हो तो बताना जरूर
हरीश अरोरा
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