मोदी सरकार का हज सब्सिडी खत्म करना एक सराहनीय कदम है . क्या कहना है आप का
कुछ लोगों का कहना है कि मोदी सरकार का हज
सब्सिडी खत्म करना एक सराहनीय कदम है. यह कदम बहुत पहले उठा लेना चाहिए था, लेकिन केंद्र में जो पिछली सरकारें थीं उनका ढुलमुल
काम करने के तरीके की वजह से ऐसा नहीं हो सका. अब मोदी सरकार को एक नेशनल
मैनेजमेंट अथॉरिटी बनानी चाहिए और अल्पसंख्यक मंत्रालय के बजाए इस अथॉरिटी के जरिए
हज मैनेजमेंट का काम करना चाहिए ताकि हज यात्रा और उससे जुड़े तमाम मुद्दों को एक
प्रोफेशनल ढंग से निपटाया जा सके. इसके साथ ही सरकार को अब गुडविल डेलीगेशन पर भी
पाबंदी लगानी चाहिए क्योंकि उस डेलीगेशन से सामान्य हाजी को कोई लाभ नहीं होता है.
इस डेलीगेशन में सिर्फ मंत्री अधिकारी और मुस्लिम समाज के प्रतिनिधि जाते हैं जो
वहां पर एक तरीके से भारत की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं और फाइव स्टार कल्चर से
जुड़े रहते हैं.और वह मानते है कि हज
जैसे
पवित्र अवसर पर इसका कोई औचित्य नहीं बनता. हज जैसी धार्मिक यात्रा पर
सरकार द्वारा दी जाने वाली छूट सीधे तौर पर एक मुसलमान यात्री को तो कतई नहीं
मिलती. सवाल है कि अखिर जो पैसा सरकार मुसलमानों को हज सब्सिडी के नाम पर देती है, वह जाता कहां है. हकीकत यह है कि जो रकम हज
सब्सिडी के नाम पर सरकार मुसलमानों को देती है वो पैसा एयर लाइंस कंपनियों के
खातों में चला जाता है. आरोप तो यह भी है कि घाटे में चल रही एयर इंडिया को मजबूत
करने के लिए हज सब्सिडी की बंदूक मुसलमानों के कंधे पर रखकर चलाई जा रही है. गौरतलब है कि सरकार हज
सब्सिडी के नाम पर हर साल करोड़ों रूपए खर्च करती है. एक आंकडे के मुताबिक साल 2012 में यह रकम 836.56
करोड़
रूपए, 2013 में 680.03 करोड़ और 2014
में
533 करोड़ रूपए रही. साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अख्तियार करते
हुए कहा है कि आने वाले 10 सालों में धीरे-धीरे हज सब्सिडी खत्म कर दी
जाए. वहीं कोर्ट ने हज यात्रियों को दी जा रही सब्सिडी में सरकार की नीति को गलत
ठहराया. एयर इंडिया कंपनी फिलहाल लगभग 2100 करोड़ रूपए के घाटे में चल रही है जिस पर यह
आरोप लगना जायज़ है. यही नहीं हज सब्सिडी को लेकर बात हाजियों को सुननी पड़ती है, जबकि यह पैसा एयर इंडिया और ऐसी ही कई एयर
कंपनियों और पॉलिटीशियन की जेब में जा रहा है.एक मुसलमान हज यात्रा पर जाने की तभी
सोचता है जब वो अपनी मेहनत की कमाई का जायज़ पैसा इकट्ठा कर लेता है. एक मुस्लिम
धर्म यात्री अपने खाने-पीने, रहने के लिए लिए खुद की
जायज कमाई खर्च करता है तो फिर उनके नाम पर हज सब्सिडी की तोहमत क्यों लगाई जाती
है, जिसको लेकर हमेशा से सवालात उठते रहे हैं. हज
यात्री अपने शहर से राजधानी और फिर मुंबई से जेद्दाह की यात्रा पर एयर लाइंस पर
निकलता है. इस दौरान एयर बस पर पहुंचने से पहले के सारे खर्चे भी वही उठाता है. यह
जिस सब्सिडी की बात की जाती है वह वास्तविक तौर पर तो नहीं पर आभासी तौर पर जरूर
एक हाजी को सरकार देती है. यही बड़ा सवाल है कि वास्तविकता में क्या उस सब्सिडी की
जरूरत हाजी को है या फिर यह मात्र प्रोपेगेंडा का हिस्सा भर बन कर रह गया था. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और ऐसे ही
मुसलमानों की रहनुमाई करने वाले संगठनों को इस हज सब्सिडी को लेकर एक श्वेत पत्र
की मांग करनी चाहिए. चूंकि भ्रम हवाई किराए में है, जिसे पहले विदेश मंत्रालय
देखता था अब वही अल्पसंख्याक मंत्रालय देखता है, जिसके मंत्री मुख्तार
अब्बास नकवी हैं. उन्हें इस ओर ध्यान देकर एयर ट्रैवल कंपनियों के लिए एक ग्लोबल
टेंडर के जरिए यात्रा की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए. दूसरी ओर जो एयर लाइंस
यात्रियों को हज यात्रा पर ले जाती हैं उनको जाते समय तो यात्रियों की संख्या मिल
जाती है, लेकिन वापसी के समय स्थिति वैसी नहीं होती.
यही 40 दिन बाद जब पवित्र यात्रा कर हाजी लौटते हैं
तब भी यही स्थिति निर्मित होती है. यही नहीं हाजियों से ज्यादा किराया भी वसूला
जाता है. यही वास्तविक समस्या है जिसका हल ढूंढना लाजमी है.सरकारों को इस ओर ध्यान
देने की जरूरत भी है. जिससे मुस्लिम समुदाय की पवित्र यात्रा हज को लेकर सब्सिडी
दिए जाने पर सवाल खड़े न किए जा सके. साथ ही इस पर सियासत होने की बजाय इसे एक
साकारात्मक सोच के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के पालन के रूप में देखना
चाहिए जो कि हमारे देश की सबसे बडी संवैधानिक संस्था है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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