हम कौन सी राजनीती में जी रहे हैं ?
क्या किसी विरोध को कुचलने के लिए अलोकतांत्रिक तरीके
अपनाने चाहिए ? क्या सवा अरब से ज्यादा आबादी वाले देश में सभी समस्याओं का काल पड़
गया है ? क्या राजनीतिक विरोध कबिर्स्तान-शमसान कसाब,गुजरात के गधो तक ही सीमित
होकर रह गया है ? क्या चुनावी विमर्श- सड़क, बिजली, पानी ,सेहत और शिक्षा तक ही
नहीं सीमित होना चाहिए था I यहाँ कौन सी राजनीती का विकास हो रहा है I विकास की
राजनीती की दुहाई देने वाले शायद भूल गए कि ऐसे देश में किसी भी तरह का विकास नहीं
हो सकता I भारतीय राजनीती की भाषा में आई
गिरावट राष्ट्रीय –चिंता का विषय बनना
चाहिए I नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक की असहमति जताने वाले सिर्फ शमशान और कसाब तक
ही सीमित रहे I हर पार्टी की विचारधारा अलग अलग होने से आप आरोप परारोप एक दूसरे
पर लगा सकते हो लेकिन सोचने वाली बात यह है की समाजवाद और भारतीय की दुहाई देने वाले भारतीय समाज को कौन
सी राजनीती का पाठ सिखा रहे है I शायद ऐसा लगता है इन सभी को देश की वास्तविक और
गंभीर समस्याओं से कोई लेना देना नहीं है I ऐसी राजनीती की जिद्द करने वालों ने
अगर प्रदेश की दिशा और दशा को सुधारने की कोशिश की होती तो शायद वह ऐसे बाण न
छोडते, लेकिन चुनावी मौके पर की जाने वाली अप्रिय बयानबाजी से राजनितिक मर्यादा
कभी अपना दामन नहीं बचा सकती I तो क्या
सभी राजनितिक सिद्धांतों को ताक पर रख कर हमारे नेता इतना भी मानने को तैयार नहीं
की देश का विकास तब होगा जब हम राजनीतिक विकास करेंगे और राजनीतिक विकास तब होगा
जब हम कुछ सिद्धांतों को लेकर आगे बढेंगे I वैसे जनता खूब जानती है कि आज एक –
दूसरे को कोसने वाले ये नेता कल कुर्सी की खातिर हम पियाला बन कर, राजनीती की जड़ों
को हिलाते हुए दुबारा से गले मिलेंगे I मगर इस सच्चाई को जानने के बावजूद जो सवाल
जनता के मन में राजनीति के प्रति अनजाने में जमा हो रहे है वह कब घृणा का रूप धारण
कर विश्वास की जमीन को तहस नहस कर देंगे यह बात कोई नहीं जनता I हमारे राजनेताओं
को एपीजे अब्दुल कलाम की यह पंक्तिया को जरा पढ़ लेना चाहिए और याद भी रखनी चाहिए
“ एक मुर्ख जीनियस बन सकता है
यदि
वह समझता है कि वो मुर्ख है
लेकिन
इक जीनियस भी मुर्ख बन सकता है
यदी
वह समझता है कि वो जीनियस है I “
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