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देश की 90 करोड़ आबादी सिर्फ 1 लाख डॉक्टरों के भरोसे

गरीब आदमी कहा जाये ?
नई दिल्ली (ईएमएस)। 1.3 अरब लोगों की आबादी का इलाज करने के लिए भारत में लगभग 10 लाख 
एलोपैथिक डॉक्टर हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की माने तो इनमें से केवल 1.1 लाख डॉक्टर
सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करते हैं। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 90 करोड़ आबादी स्वास्थ्य देखभाल
के लिए इन थोड़े से डॉक्टरों पर ही निर्भर है। आईएमए के मुताबिक, डॉक्टरों व मरीजों का अनुपात बिगड़ा 
हुआ होने की वजह से अस्पतालों में एक बेड पर दो मरीजों तक को रखना पड़ जाता है और चिकित्सक काम के
बोझ तले दबे रहते हैं। भारत में न तो पर्याप्त अस्पताल हैं, न डॉक्टर, न नर्स और न ही सार्वजनिक स्वास्थ्य 
कर्मचारी।स्वास्थ्य देखभाल की क्वालिटी और उपलब्धता में बड़ा अंतर है। यह अंतर केवल राज्यों के बीच नहीं
है, बल्कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भी है। इसी स्थिति के कारण नीम-हकीम खुद को डॉक्टर की तरह पेश
कर मौके का फायदा उठा रहे हैं। डॉक्टरों की अनुपस्थिति में लोगों के पास इलाज के लिए ऐसे फर्जी डॉक्टरों के
पास जाने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है।  आईएमए के आनरेरी अध्यक्ष डॉ.के.के.अग्रवाल का कहना है
कि हाल ही में उत्तर प्रदेश में बच्चों की मौतों का मामला प्रकाश में आया था। इस मामले से स्वास्थ्य सेवा के
समक्ष मौजूद दो बड़ी चुनौतियां उजागर हुईं- एक तो चिकित्सक और रोगियों का बिगड़ा हुआ अनुपात और दूसरी,
अयोग्य पेशेवरों का डॉक्टरों के भेस में काम करना।उन्होंने कहा कि यह एक दुखद तथ्य है कि ग्रामीण इलाकों
में बीमार व्यक्ति को चिकित्सकों की जगह पहले तथाकथित धर्म चिकित्सकों के पास ले जाया जाता है। वे 
चिकित्सक की भांति इलाज करने का ढोंग करते हैं। वहां से निराशा मिलती है तभी लोग अस्पताल की ओर 
रुख करते हैं।


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