Social Media- तो आज आप किस पर भड़ास निकाल रहे है ?
सभी है
एडिटर,सभी है रिपोर्टर
बहुत पहले मार्शल मैकलुहान ने कहा
था कि माध्यम ही संदेश है। उनकी दूरदृष्टि ने शायद भांप लिया था कि आने वाले समय
में जब सूचनाएं,
संचार क्रांति के पंखों पर सवार
होकर एक जगह से दूसरे जगह पहुंचेंगी, तो उनका
क्या प्रभाव होगा। इंटरनेट क्या आया कि समाज के
ज्यादातर लोग संपादक, पाठक,लेखिक दर्शक बन कर देश की पूरी तस्वीर बदलने में लग गए। इंटरनेट के आने से पहले तक सूचना की दुनिया में एक ठहराव
सा था। यानी हर बात नाप-तौल कर कही जाती थी या पहुंचाई जाती थी। चाहे अखबार हो या
रेडियो अथवा टेलीविजन, क्या
परोसना है यह महत्वपूर्ण था। रेडियो से आने वाली खबरें इतनी ज्यादा विश्वसनीय थीं
कि कोई भी उसे गलत नहीं कहता था। अखबारों में भी पेड न्यूज़ कम ही नज़र आती थी ।
क्योंकि इन सभी प्लेटफार्मो पर न केवल सूचनाएं ठोक बजाकर दी जाती थीं, बल्कि अभिव्यक्ति की आजादी का इस्तेमाल भी पूरी जिम्मेदारी से
किया जाता था। किसी की आलोचना भी बड़े सलीके से की जाती थी, करनी भी हो, तो बाजपाई की तरह मर्यादित तरीके से, मतलब सावधानी भी बरती जाती थी। और अब इस स्वतंत्रता का नाजायज़
फायदा उठाया जा रहा है, जिसका
सावधानी से इस्तेमाल होना चाहिए था। लेकिन शायद अब यह भड़ास निकालने का माध्यम बन
गया है। आज भारत में भी लगातार ऐसे प्रकरण खूब हो रहे हैं, जिसमें आम जनता से लेकर राजनीतिक दलों के समर्थक, कार्यकर्ता यहां तक कि जिम्मेदार पदों पर बैठे नेता भी सोशल
मीडिया पर निजी हिसाब-किताब चुकता करने में जी जान से लगे हैं। याद कीजिए 2014 के चुनाव, कैसे ट्विटर, फेसबुक जैसे मंचों पर दो गुट आमने सामने खड़े हो कर एक-दुसरे को ललकार
रहे थे । आज भी एक जो प्रधानमंत्री मोदी का समर्थक समूह है, जो स्वयं को देशभक्त घोषित कर चुका है और दूसरा उनका विरोधी
गुट, जिसे वह राष्ट्रद्रोही,हिंदुविरोधी साबित
करने पर तुले हैं। शायद कुछ लोग भूल जाते है हमारे यहां लोकतंत्र है तो फिर विरोध
का भी सम्मान होना चाहिए।बहरहाल, समर्थकों
और विरोधियों की सोशल मीडिया पर लड़ाई शब्दों की नैतिकता, मर्यादा, अभिव्यक्ति
की आजादी सबका अतिक्रमण करते जा रही है। कुछ समय पहले पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या
पर मोदी समर्थकों के जैसे निम्नस्तरीय ट्वीट आए, वे उनकी हदों और स्तर को दिखा रहे थे। ऐसे में भला कांग्रेस कैसे पीछे रह सकती थी और फिर उनके भी ऐसे ही
ट्वीट सामने आने लगे। क्या कांग्रेस या भाजपा या सोशल मीडिया के जरिए अपनी बात
पहुंचाने की हड़बड़ी रखने वाला कोई भी व्यक्ति कीचड़ पर पत्थर फेंक कर अपने आप को बचा
सकता है? क्या कुछ छींटें
उस पर नहीं पड़ सकते हैं? या तो उन छीटों को बर्दाश्त करने की क्षमता रखिए या फिर
पत्थर फेंके बिना, कीचड़ की
ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करिए। चुनाव आपका है, क्योंकि माध्यम भी आप ही का है। हा, 2019 का चुनाव में कौन किसे फालो करता
है यह तो समय ही बताएगा ।
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